Monday, August 17, 2009

"मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का बाल अधिकार विधेयक २००८" - असंवैधानिक, बाल विरोधी एवं शिक्षा विरोधी


प्रेस विज्ञप्ति
स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में झारखण्ड विज्ञान मंच द्वारा आयोजित गोष्ठी में विभिन् वक्ताओं ने संसद द्वारा पारित "मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का बाल अधिकार विधेयक २००८" को असंवैधानिक, बाल विरोधी एवं शिक्षा विरोधी करार देते हुए इस बिल के प्राइवेट एवं व्यवसाय उन्मुखी होने का आरोप लगाया तथा राष्ट्रपति से इस बिल को सहमति न प्रदान करने की अपील की. झारखण्ड विज्ञान मंच ने मूल रूप से संसद के द्वारा इस बिल के पास करने के तौर तरीके पर भी सवाल खड़े किये है. २४५ सदस्यों की राज्य सभा में सिर्फ ५४ सदस्यों की उपस्थिति तथा लोक सभा में ११३ क्या दर्शाता है. दोनों ही संख्या इन सदनों के कोरम के इर्द गिर्द है जो सिर्फ बिल पास करने की औपचारिकता निभाने की आवश्यकता मात्र है. इसे लोकतान्त्रिक की संज्ञा तो नहीं ही दी जा सकती. जन प्रतिनिधि एवं सरकार से यह अनुरोध किया गया है कि वे बताये कि क्या इतनी कम संख्या द्वारा समर्थित बिल लोकतान्त्रिक आवश्यकता के रूप में कभी स्वीकार की जा सकती है? क्या यह इस देश के सबसे बडी पन्चायत की तौहीन नही है? वैसे भी इस बिल को कभी भी पब्लिक वाद विवाद या जन परामर्श के दायरे में नहीं लाया गया. मंच का स्पष्ट मत है कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट के १९९३ के ऐतिहासिक उन्नीकृष्णन फैसले से बच्चो को मिले शिक्षा के अधिकार को छीनने का कानून है. मंच का यह स्पष्ट मत है कि शिक्षा, बाज़ार मे बिकाउ वस्तु नही है यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. और यह भी कि इस बिल के कानून बन जाने से

१ सभी बच्चो को सही मायने मे मुफ़्त शिक्षा नही मिल पायेगी.
२ स्कूली शिक्षा का निज़ीकरण बढेगा और शिक्षा मे मुनाफ़ाखोरी की व्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा.
३ मुफ़्त और सन्तोषजनक तथा समान गुणवता वाली माध्यमिक शिक्षा का अधिकार नही मिलेगा.
4 हर सरकारी या निज़ी स्कूल समान रूप से अमीर - गरीब के लिये "पडोसी स्कूल" नही बन पायेगी.
५ विक्लान्गो के साथ हो रही गैर बराबरी ज़ारी रहेगी.
६ निज़ी स्कूलो मे मनमानी फ़ीस लेने का सिलसिला चलता रहेगा और प्रवेश की अनुमति फ़ीस तय करेगी.
७ सरकार आवश्यक धन मुहैया नही करा पायेगी और अन्ततः इसे बाज़ार पर छोड दिया जायेगा.
8 शिक्षको का आर्थिक, सामाज़िक एवम शैक्षणिक स्तर उंचा नहीं होगा.
९ शिक्षको को गैर शिक्षण कार्यो से मुक्ति नहीं मिलेगी।
10 सर्व शिक्षा अभियान जैसी बहुपरती स्कूल व्यवस्था की शिक्षा नीति को बनाये रखने में मददगार होगी।
गोष्ठी के शुरु मे मंच के अध्यक्ष डा वी एन शर्मा ने २०-२१ जून को हैदराबाद में हुई बैठक की रिपोर्ट पेश की जिसमे अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच की स्थापना और उस बैठक में लिए गए संकल्पों की जानकारी दी गयी. इसके बाद मंच के वित्त समन्यवक मो. समीउल्लाह खान ने ९ अगस्त को भारत छोडो दिवस के अवसर पर हुए भोपाल में शिक्षा अधिकार मंच के सम्मलेन तथा गवर्नर हॉउस तक हुई रैली की विस्त्रित जानकारी दी. हजारो लोगो की भीड़ को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच के अध्यक्ष डा. अनिल सदगोपाल, भारत जन आन्दोलन के डा.ब्रम्हदेव शर्मा, समाजवादी जन परिषद् के सुनील, झारखण्ड विज्ञान मंच के मो. समीउल्लाह खान, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सचिव श्री केदार नाथ पांडे आदि वक्ताओ ने स्पष्ट मत व्यक्त किया कि यह कानून शिक्षा को बेचने का फरमान है अतः भारत की जनता से इस असंवैधानिक, बाल विरोधी एवं शिक्षा विरोधी कानून का सक्रिय विरोध करने का आह्वान किया गया।

झारखण्ड विज्ञान मंच ने अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच के संकल्प तथा इस बिल को वापस करने के उद्देश्य से राष्ट्रपति को लिखे गए अनुरोध पत्र का पूर्ण समर्थन करने का संकल्प दुहराया। गोष्ठी में वक्ताओ ने एक मत से यह विचार व्यक्त किया कि झारखण्ड विज्ञान मंच इस "मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का बाल अधिकार विधेयक २००८" के असंवैधानिक, बाल विरोधी एवं शिक्षा विरोधी चरित्र का विरोध करने वाले हर व्यक्ति या समूह का पुरजोर समर्थन करेगी. मंच ने गरीब, अल्पसंख्यक, और झारखण्ड की पिछडी जनता और बुद्धिजीवियों से इस विधेयक को पुरी तरह से खारिज करने की अपील की. बैठक की अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष डा. वी. एन. शर्मा ने की.

(डा. वी. एन. शर्मा)
अध्यक्ष,
झारखण्ड विज्ञान मंच

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