Sunday, October 26, 2008
कैग ने गृह मंत्रालय की खिंचाई की
नई दिल्ली। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंत्री समूह [जीओएम] के आदेशों का उल्लंघन कर बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को मंत्रालयों एवं दूसरे सरकारी कार्यालयों में तैनात करने को लेकर गृह मंत्रालय की खिंचाई की है।
संसद में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कैग ने कहा कि गृह मंत्रालय ने जीओएम के आदेशों को लागू करने के बजाए बीएसएफ और सीआरपीएफ को मंत्रालय के कामों में लगाया। इसने कहा कि सुरक्षाकर्मियों की तैनाती का विश्लेषण करने पर पाया गया कि विभिन्न रैंकों के सुरक्षाकर्मियों को बड़ी संख्या में मंत्रालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों में गृह मंत्रालय की अनुशंसा पर तैनात किया गया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीएसएफ और सीआरपीएफ के मुख्यालयों और इसके महानिदेशक के दिल्ली कार्यालयों में सुरक्षाकर्मियों की संख्या स्वीकृत संख्या की तुलना में बहुत ज्यादा है। ऐसा इसलिए है कि बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को उनके सामान्य कार्यस्थल से हटाकर मुख्यालयों में कई सालों तक उनकी तैनाती कर दी जाती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बीएसएफ के मामले में अनधिकृत अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती 168 फीसदी है, जबकि सीआरपीएफ के मामले में यह 32 फीसदी है। कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि सुरक्षाकर्मियों को कार्यस्थलों से हटाकर दिल्ली स्थित उनके महानिदेशकों के कार्यालयों में तैनात करने से राजकोष को जबरदस्त हानि हुई। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाईयों को सुरक्षा उपलब्ध कराने वाली सीआईएसएफ को लंबे समय से उसकी सेवा के बदले आठ करोड़ 12 लाख रुपये का बिल भुगतान नहीं किया गया। बिल का भुगतान नहीं करने वालों में एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया, हिंदुस्तान आर्गेनिक केमिकल्स और हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड शामिल हैं। कैग ने आईटीबीपी के महानिरीक्षक की भी खिंचाई की है। इसने कहा कि उसके कार्यस्थलों से 30 से 40 गाडि़यों को अवैध तरीके से हटाकर मुख्यालय में तैनात किया गया है। इससे 2002-03 से 2006-07 के बीच पेट्रोल, डीजल और रखरखाव पर एक करोड़ 39 लाख रुपये बर्बाद किए गए।
जलवायु परिवर्तन संस्थान कायम करने की सिफारिश
नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के मकसद से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय या विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक राष्ट्रीय संस्थान कायम करने की सिफारिश की है।
संसद में हाल में पेश की गई विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पर्यावरण संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और विभिन्न उपाय अपनाने के लिए व्यापक अध्ययन एवं शोध तथा उच्च स्तरीय तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत है।
अन्नाद्रमुक नेता की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा कि मौसम बदलाव और इसके प्रभावों से निपटने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान एजेंडा की पहल करने की जरूरत है। इसके लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय या विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत अलग से एक राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन संस्थान कायम किया जा सकता है।
दुनिया के तापमान में हो रही वृद्धि और भारत पर इसके प्रभाव के बारे में समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के बारे में इस बात को लेकर चिंताएं हैं कि इससे हिमालयी ग्लेशियर पर विपरीत असर पड़ सकता है और यह पिघल सकते हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार हमारे ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 21 प्रतिशत पिघले हैं। समिति ने कहा कि पिछले पचास सालों में हालांकि कई राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने विभिन्न प्रयास किए हैं, लेकिन फिर भी भारतीय ग्लेशियरों पर दुनिया में सबसे कम अध्ययन हुआ है।
संसदीय समिति ने कहा कि हिमालयी ग्लेशियरों के बारे में अनुसंधान प्रयासों को मजबूती देने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि मध्य दक्षिण पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया में विशेषकर इनकी बड़ी नदियों की घाटियों में ताजे जल की उपलब्धता 2050 तक कम होने का पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है। यह सीधे तौर पर हमारे लिए चिंता की बात है। इसमें कहा गया कि एशिया के तटवर्ती क्षेत्र विशेषकर दक्षिण पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया के विशाल डेल्टा क्षेत्र में बाढ़ के रूप में समुद्री जल घुस आने की आशंका अधिक है और कई मामलों में नदियों में भी भीषण बाढ़ आने का खतरा है। इन खतरों से हमारे विशाल डेल्टा क्षेत्र विशेषकर सुंदरवन अछूते नहीं रहेंगे।
समिति के अनुसार अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से तेजी गति से हो रहे शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण पर दबाव बढ़ जाएगा। इसने कहा कि दक्षिण पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ एवं सूखे की वजह से होने वाली बीमारियों एवं मृत्यु का खतरा भी बढ़ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत की अधिक मजबूत स्थिति नहीं होने के कारण यह जरूरी है कि इसके प्रभावों को कम करने के उपाय अपनाने के अलावा गरीबी कम करने के प्रयासों को तेज किया जाए।
परमाणु अनुसंधान के कोष पर केंद्र की खिंचाई
Oct 26, 01:20 pm
नई दिल्ली। संसद की एक स्थायी समिति ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र [बीएआरसी] सहित देश के प्रमुख संस्थानों की अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के लिए कोष में कमी किए जाने पर सरकार की जमकर खिंचाई की है।
विज्ञान प्रौद्योगिकी पर्यावरण एवं वन मामलों की संसदीय समिति ने परमाणु ऊर्जा विभाग से कहा है कि वह अपने कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त कोष आवंटन का मामला आगे बढ़ाए। समिति ने पाया कि बीएआरसी इंदिरा गांधी सेंटर फार एटामिक रिसर्च, वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रोन सेंटर, राजा रमन्ना सेंटर फार एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च सहित विभिन्न संस्थानों में अनुसंधान एवं विकास की योजनाओं के लिए कोष में कटौती कर दी गई।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रमुख प्रौद्योगिकियों के व्यापक अनुसंधान एवं विकास में जुटे अग्रणी संस्थानों के कोष में कटौती की गई है। निश्चित रूप से इससे परमाणु ऊर्जा के लिए किए जा रहे अनुसंधान एवं विकास पर असर पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति यह नहीं समझ पा रही है कि कोष आवंटन में कटौती के बाद विभाग परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अपने लक्ष्य हासिल कैसे करेगा।
समिति ने उम्मीद जताई है कि भविष्य में योजना आयोग और वित्त मंत्रालय विभाग के आवंटन को अंतिम रूप देते समय पूरी सावधानी बरतेंगे। सरकार ने समिति को बताया कि उसने वित्त मंत्रालय और योजना आयोग का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है और भविष्य में विभाग के आवंटन को अंतिम रूप देते समय पूरी सावधानी बरती जाएगी। समिति ने कहा कि परमाणु ऊर्जा विभाग को अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं के लिए व्यापक आवंटन की मांग को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए ताकि बजट अनुमान में इसके लिए पर्याप्त आवंटन सुनिश्चित हो सके। समिति ने यह भी कहा कि विभाग ने बजट आवंटन का प्रस्ताव रखने या उसे अंतिम रूप देने से पहले चल रही परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों की प्रगति की निगरानी एवं समीक्षा के लिए जो निगरानी प्रणाली विकसित की है उसे भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोष में कटौती की कोई संभावना न रहे। सरकार ने समिति को बताया कि वर्तमान निगरानी प्रणाली कारगर तरीके से काम कर रही है।
No comments:
Post a Comment